Class 10th Hindi Subjective Question

नौबतखाने में इबादत Subjective Question Answer 2023 || Class 10th Hindi Naubatkhane me Ibadat ka Subjective Question Paper Pdf Download 2023

लघु उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. पठित पाठ के आधार पर बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का वर्णन करें।

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उत्तर ⇒ अमीरुद्दीन यानी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ चार साल की उम्र में ही नाना की शहनाई को सुनते और शहनाई को ढूँढ़ते थे। उन्हें अपने मामा के सान्निध्य ने भी बचपन में शहनाईवादन की कौशल विकास में लाभान्वित किया । 14 साल की उम्र में वे बालाजी के मंदिर में रियाज करने के क्रम में संगीत साधनारत हए और आगे चलकर महान कलाकार हुए।


प्रश्न 2. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है ?

उत्तर ⇒ डुमराँव की महत्ता शहनाई के कारण है। प्रसिद्ध शहनाईवादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था । शहनाई बजाने के लिए जिस ‘रीड’ का प्रयोग होता है, जो एक विशेष प्रकार की घास ‘नरकट’ से बनाई जाती है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है।


प्रश्न 3. बिस्मिल्ला खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे ? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है ?

उत्तर ⇒ बिस्मिल्ला खाँ जब इबादत में खुदा के समाने झुकते तो सजदे में गिड़गिड़ाकर खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँगते । इससे पता चलता है कि खाँ साहब धार्मिक, संवेदनशील एवं निरभिमानी थे। संगीत-साधना हेतु समर्पित थे। अत्यन्त विनम्र थे।

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प्रश्न 4. सुषिर वाद्य किन्हें कहा जाता है ? ‘शहनाई’ शब्द की व्युत्पत्ति किस प्रकार हुई है ?

उत्तर ⇒ सुषिर वाद्य ऐसे वाद्य हैं, जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। अरब देशों में ऐसे वाद्यों को नय कहा जाता है और उनमें शाह को शहनाई की उपाधि दी गई है, क्योंकि यह वाद्य मुरली, शृंगी जैसे अनेक वाद्यों से अधिक मोहक है।


प्रश्न 5. ‘संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते हैं ?

उत्तर ⇒ कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी को संगीतमय कहा गया है। वह जब बहुत गरम घी में कचौड़ी डालती थी, तो उस समय छन्न से आवाज उठती थी जिसमें अमीरुद्दीन को संगीत के आरोह-अवरोह की आवाज सुनाई देती थी। इसीलिए कचौड़ी को ‘संगीतमय कचौड़ी’ कहा गया है।


प्रश्न 6. बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे ? इससे हमें क्या सीख मिलती है ?

उत्तर ⇒ बिस्मिल्ला खाँ जब कभी काशी से बाहर होते तब भी काशी विश्वनाथ को नहीं भूलते । काशी से बाहर रहने पर वे उस दिशा में मुँह करके थोड़ी देर तक शहनाई अवश्य बजाते थे। इससे हमें धार्मिक दृष्टि से उदारता एवं समन्वयता की सीख मिलती है । हमें धर्म को लेकर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।


प्रश्न 7. पठित पाठ के आधार पर मुहर्रम पर्व से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव का परिचय दें।

उत्तर ⇒ मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यधिक जुड़ाव था । मुहर्रम के महीने में वे न तो शहनाई बजाते थे और न ही किसी संगीत-कार्यक्रम में सम्मिलित होते थे। मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ खड़े होकर ही शहनाई बजाते थे। वे दालमंडी में फातमान के लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तक रोते हुए नौहा बजाते पैदल ही जाते थे।


प्रश्न 8. आशय स्पष्ट करें –
फटा सुर न बख्शे । लुंगिया का क्या है,
आज फटी है, तो कल सिल जाएगी।

उत्तर ⇒ बिस्मिल्ला खाँ प्रायः खुदा से दुआ माँगा करते थे कि वे उन्हें सच्चा सुर बख्श दे, जो संगीत की कसौटी पर हर दृष्टि से पूर्ण तथा खरा है। एक दिन जब उनकी शिष्या ने उनकी फटी लुंगी को बदलने का आग्रह किया तो उत्तर देते हुए कहा कि लुंगी तो सिली या बदली जा सकती है, पर सुर सुरीला होना चाहिए बेसुरा नहीं।


प्रश्न 9. आशय स्पष्ट करें –
“काशी संस्कृति की पाठशाला है।”

उत्तर ⇒ काशी को ‘संस्कृति की पाठशाला’ कहा गया है। यह भारत की ज्ञान नगरी.रही है। यहाँ भारतीय शास्त्रों का ज्ञान है । यहाँ कला-शिरोमणि रहते हैं । यहाँ का इतिहास पुराना है। यह प्रकांड विद्वानों, धर्मगुरुओं तथा कला प्रेमियों की नगरी है, अर्थात् काशी संस्कृति विकास का मूल केन्द्र है।


दीर्घ उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. ‘बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई।’ एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।

अथवा, एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय ‘नौवतखाने में इबादत’ शीर्षक पाठ के आधार पर दें।

उत्तर ⇒ बिस्मिल्ला खाँ एक उत्कृष्ट कलाकार थे। शहनाई के माध्यम से उन्होंने संगीत-साधना को ही अपना जीवन मान लिया था। शहनाईवादक के रूप में वे अद्वितीय पहचान बना लिये थे । बिस्मिल्ला खाँ का मतलब है -बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई। शहनाई का तात्पर्य बिस्मिल्ला खाँ का हाथ । हाथ से आशय इतना भर कि बिस्मिल्ला खाँ की फूंक और शहनाई की जादुई आवाज का असर हमारे सिर चढ़कर बोलने लगता है। खाँ साहब की शहनाई से सात सुरताल के साथ निकल पड़ते थे। इनका संसार सुरीला था। इनकी शहनाई में परवरदिगार, गंगा मइया, उस्ताद की नसीहत उतर पड़ती थी। खाँ साहब और शहनाई एक-दूसरे के पर्याय बनकर संसार के सामने उभरे।

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