Class 10th Bihar Board Social Science Subjective Question Answer |
1. धर्म-निरपेक्ष राज्य से क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ वैसा राज्य जिसमें किसी भी धर्म विशेष को प्राथमिकता न देकर सभी धर्मों को समान आदर प्राप्त हो उसे धर्म-निरपेक्ष राज्य कहते हैं। जैसे-भारत।
2. सांप्रदायिकता की परिभाषा दें ।
उत्तर ⇒ जब हम यह कहते हैं कि धर्म ही समुदाय का निर्माण करती है तो सांप्रदायिक राजनीति का जन्म होता है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही सांप्रदायिकता है। इसके अनुसार एक धर्म विशेष में आस्था रखनेवाले एक ही समुदाय के होते हैं और उनके मौलिक तथा महत्त्वपूर्ण हित एक जैसे होते हैं।
3. साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये आप क्या करेंगे ?
उत्तर ⇒ भारत में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं। धार्मिक पहचान के आधार पर राजनीतिक व आर्थिक स्वार्थों की पूर्ति के कारण साम्प्रदायिक सद्भाव के स्थान पर साम्प्रदायिक संघर्ष का जन्म होता है। साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए । शिक्षा व जागरुकता का विकास, विभिन्न धर्म के लोगों में आपसी समझ का विकास . तथा धर्म के राजनीतिक उपयोग पर रोक लगाना आवश्यक है।
4. सामाजिक विभाजन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒ प्रत्येक समाज में लोगों के जन्म, भाषा, जाति, धर्म के आधार पर विभेद होना स्वाभाविक है। इन आधारों पर लोग अलग-अलग समुदायों से संबद्ध हो जाते हैं तो उसे सामाजिक विभाजन कहा जाता है। भारत में जाति के आधार पर संवर्ण, दलित, पिछड़ी जातियों के समुदाय सामाजिक विभाजन के उदाहरण हैं।
5. लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ किस प्रकार अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को संभालती हैं ? उदाहरण के साथ बतावें।
उत्तर ⇒ समानता और स्वतंत्रता, लोकतंत्र के दो आधार हैं। समानता का सिद्धांत जाति, धर्म, वंश, लिंग, भाषा क्षेत्र जैसे किसी भी आधार पर व्यक्ति के विभेद को अस्वीकार करता है। इसकी जगह कानून के समक्ष समानता, समान अवसर, समान संरक्षा की स्थापना करता है। स्वतंत्रता के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को समान स्वतंत्रता प्रदान की जाती है जिसमें भाषण एवं अभिव्यक्ति, संघ-संगठन बनाने, पेशा-व्यवसाय चुनने, मताधिकार आदि शामिल हैं।
6. भारत की संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ? अथवा, भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
उत्तर ⇒ यद्यपि मनुष्य जाति की आबादी में महिलाओं की संख्या आधी है, पर सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है। पहले सिफ्र पुरुष वर्ग को ही सार्वजनिक मामलों में भागीदारी करने, वोट देने या सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति थी । सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी हेतु महिलाओं को काफी मेहनत करनी पड़ी। महिलाओं के प्रति समाज के घटिया सोच के कारण ही महिला आंदोलन की शुरुआत हुई। महिला आंदोलन की मुख्य माँगों में सत्ता में भागीदारी की माँग सर्वोपरि रही है। औरतों ने सोचना शुरू कर दिया कि जब तक औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक इस समस्या का निपटारा नहीं होगा। फलतः राजनीतिक गलियारों में इस बात पर बहस छिड़ गयी कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने का उत्तम तरीका यह होगा कि चुने हुए प्रतिनिधि की हिस्सेदारी बढ़ायी जाए। यद्यपि भारत के लोक सभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 59 हो गई है। फिर भी इसका प्रतिशत 11% के नीचे ही है। आज भी आम परिवार के महिलाओं को सांसद या विधायक बनने का अवसर क्षीण है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना लोकतंत्र के लिए शुभ होगा। भारत में हाल में महिलाओं को विधायिका में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात संसद में पारित हो चुकी है।
7. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्म-निरपेक्ष देश बनाता है ? अथवा, भारतीय संविधान के दो प्रावधानों का वर्णन करें जो भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाते हैं।
उत्तर ⇒ (i) भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सांविधान संशोधन द्वारा भारत को धर्मनिरपेक्षण राज्य घोषित किया गया है।
(ii) संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख कर दिया गया है कि भारत का अपना कोई धर्म नहीं है।
8, लैंगिक असमानता क्या है?
उत्तर ⇒ लिंग के आधार पर समाज में महिलाओं व पुरुषों में जो असमानता पायी जाती है, उसे लैंगिक असमानता कहते हैं। यह असमानता सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व अन्य क्षेत्रों में पाई जाती है।
9. भाषा नीति क्या है ?
उत्तर ⇒ भारत वास्तव में विविधतापूर्ण देश है जहाँ 114 से अधिक प्रमुख भाषाओं का प्रयोग होता है। इसमें इन सभी भाषाओं के प्रति आदर होना चाहिए। ये सब मिलकर हमारी भाषाई विरासत को समृद्ध बनाते हैं तथा उन्हें साथ विकसित होने में मदद करते हैं। अतः प्रमुख भाषाओं को समाहित करने की नीति ने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया है। भारतीय संविधान में प्रमुख भाषाओं को समाहित किया गया है। जैसे-हिन्दी, अंग्रेजी, बंगला, तेलगु, कन्नड़ आदि। यही भाषा नीति है। इसे अपना कर राष्ट्रीय एकता को सबल बनाया गया है।
10. भारत को गणतंत्र क्यों कहा जाता है ?
उत्तर ⇒ भारत ने 26 जनवरी, 1950 ई. को स्वनिर्मित संविधान को अंगीकार एवं स्वीकार किया जिसमें नागरिकों के मूलभूत अधिकारों को सुरक्षित रखने पर बल दिया गया। अत: भारत को गणतंत्र कहा जाता है।
11. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के विषय में लिखें । अथवा, देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का मूल अधिकार संविधान के किस अनुच्छेद में दिया गया है?
उत्तर ⇒ हमारे संविधान के अनुच्छेद-19 में देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का मूल अधिकार दिया गया है ।
12. संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित संविधान क्यों आवश्यक है ?
उत्तर ⇒ संघात्मक शासन व्यवस्था में लिखित संविधान आवश्यक है। क्योंकि इस शासन व्यवस्था में प्रान्तों व केन्द्र सरकार के मध्य शक्तियों का बँटवारा किया जाता है। शक्तियों का बँटवारा संविधान द्वारा ही किया जाता है। यदि संविधान लिखित नहीं होगा तथा शक्तियों का बँटवारा स्पष्ट तथा सुनिश्चित नहीं होगा तो केन्द्र व प्रान्तों के मध्य अधिक विवाद उत्पन्न होंगे।
13. रंग भेद क्या है ?
उत्तर ⇒ रंग-भेद का तात्पर्य चमड़ी (Skin) के रंग के आधार पर लोगों में भेदभाव करना है। दक्षिण अफ्रीका में गोरे लोगों की सरकार ने बहुसंख्यक काले लोगों के प्रति विभिन्न प्रकार के भेदभावों की नीति अपनायी थी । इसे रंग-भेद नीति के नाम से जानते हैं।
14. सामाजिक विविधता राष्ट्र के लिये कब घातक बन जाती है ?
उत्तर ⇒ सामाजिक विविधता वैसे तो समाज के विकास का लक्षण है; लेकिन जब यह विविधता लोगों में तनाव, संघर्ष व अलगाववाद को जन्म देती है तो यह राष्ट्र के लिये घातक बन जाती है। भारत में जाति, धर्म, संस्कृति, भाषा आदि की विविधताएँ पायी जाती हैं। लेकिन निहित स्वार्थों तथा सहनशीलता के अभाव में ये विविधताएँ सामाजिक तनाव का कारण बन जाती हैं जो कि राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है।
15. नारी सशक्तीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर ⇒ नारी सशक्तीकरण का तात्पर्य यह है कि महिलाओं को उनको प्रभावित करने वाले आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व पारिवारिक मामलों में नीति निर्माण प्रक्रिया में भागीदारी प्रदान की जाए । वर्तमान युग में नारी सशक्तीकरण की धारणा को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त हो रहा है। भारत सरकार ने वर्ष 2000 में नारी सशक्तीकरण की नई नीति की घोषणा की है। पंचायतों व नगरपालिकाओं में महिला आरक्षण नारी सशक्तीकरण का उदाहरण है।
16. “हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ल्रती !”कैसे ?
उत्तर ⇒ यह कोई आवश्यक नहीं है कि सभी सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार होता है। संभवतः दो भिन्न समुदायों के विचार भिन्न हो सकते हैं, परंतु हित समान होगा। उदाहरणार्थ मुंबई में मराठियों के हिंसा का शिकार व्यक्तियों की जातियाँ भिन्न थीं, धर्म भिन्न होंगे, लिंग भिन्न हो सकता है, परंतु उनका क्षेत्र एक ही था । वे सभी एक ही क्षेत्र उत्तर भारतीय थे । उनका हित समान था और वे सभी अपने व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। इस कारण हम कह सकते हैं कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं हो सकती।
17. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं ?
उत्तर ⇒ सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों और दलितों का अंतर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब, वंचित एवं बेघर हैं और भेदभाव का शिकार हैं, जबकि सवर्ण आम तौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं, अर्थात् दलितों को महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं। अतः, हम कह सकते हैं कि जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।
18. दो कारण बताएं कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।
उत्तर ⇒ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते, इसके दो कारण हैं –
(i) जिस निर्वाचन क्षेत्र में जिस जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक होती है, प्रायः सभी राजनीतिक दल उसी जाति के उम्मीदवार को टिकट देते हैं।
अतः जाति विशेष के मतदाताओं के वोट विभिन्न दलों के उम्मीदवारों के बीच बँट जाते हैं।
(ii) उम्मीदवार को अपनी जाति के मतदाताओं के साथ-साथ अन्य जातियों के मतदाताओं के मत की आवश्यकता जीतने के लिए होती है।
19. सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर ⇒ सत्तर के दशक के पूर्व भारत की राजनीति अवचेतना सुविधा-परस्त हित समूह के बीच झूलती रही। दूसरे शब्दों में कहें तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 1967 तक राजनीति में सवर्ण जातियों का वर्चस्व रहा । सत्तर से नब्बे तक के दशक के बीच सवर्ण और मध्यम पिछड़े जातियों में सत्ता पर कब्जा के लिए संघर्ष चला । नब्बे के दशक के उपरांत पिछड़े जातियों का वर्चस्व तथा दलितों की जागृति की अवधारणाएँ राजनीतिक गलियारों में उपस्थिति दर्ज कराती रहीं और नीतियों को प्रभावित करती रहीं। भारतीय राजनीति के इस महामंथन में पिछड़े और दलितों का संघर्ष प्रभावी रहा । आधुनिक दशक के वर्षों में राजनीति का पलड़ा दलितों और महादलितों (बिहार के संदर्भ में) के पक्ष में झुकता दिखाई दे रहा है। सरकार के नीतियों के सभी परिदृश्यों में दलित न्याय की पहचान सबके केन्द्र-बिन्दु का विषय बन गया है।
20. बेल्जियम में सामाजिक विभाजन का आधार क्या हैं ?
उत्तर ⇒ बेल्जियम में सामाजिक विभाजन का आधार नस्ल और जाति न होकर भाषा विभाजन का आधार है।
21. सामाजिक विभाजन कब होता है ?
उत्तर ⇒ सामाजिक विभाजन तब होता है जब सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं।
22. नस्ल के आधार पर भेदभाव का उदाहरण कहाँ देखने को मिलता है ?
उत्तर ⇒ नस्ल या रंग के आधार पर भेदभाव का सटीक उदाहरण मेक्सिको ओलंपिक 1968 ने पदक समारोह में देखा गया।
23. माँगें आसान कब बन जाती हैं?
उत्तर ⇒ माँगें आसान एवं स्वीकृति योग्य तब बन जाती हैं जब ये संविधान के दायरे की होती हैं तथा दूसरे समुदाय को नुकसान पहुँचाने वाली नहीं होती हैं।
24. क्या सामाजिक विभाजन राजनैतिक शक्ल अख्यितार करती है ?
उत्तर ⇒ हाँ, दुनिया के तमाम देशों में सामाजिक विभाजनों के आधार अलग-अलग होते हैं, किन्तु अन्ततः ये सामाजिक विभाजन राजनैतिक शक्ल अख्तियार करने लग जाते हैं।
25. गरीबी रेखा के नीचे के निर्धारक लिखें।
उत्तर ⇒ ग्रामीण क्षेत्रों के लिय प्रतिव्यक्ति प्रति माह 327 रुपये तथा शहरी क्षेत्रों के लिए प्रति व्यक्ति प्रति माह यदि व्यय 455 रुपये से कम है तो वह व्यक्ति या परिवार गरीबी रेखा के नीचे का है।
26. गृहयुद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर ⇒ जब एक ही देश में रहनेवाले विभिन्न गुटों में आपसी संघर्ष और मार-काट शुरू हो जाता है तो इसे गृहयुद्ध का नामः दिया जाता है। जैसे-श्रीलंका में तमिलों और सिंहली समुदाय का युद्ध ।
27. बहुस्तरीय पहचान एवं राष्ट्रीय पहचान में अन्तर बताएँ।
उत्तर ⇒ बहुस्तरीय पहचान किसी व्यक्ति का अथवा व्यक्तिगत होता है जबकि – राष्ट्रीय पहचान राष्ट्रीय स्तर पर होता है। हम सब भारतीय हैं, नारा राष्ट्रीय पहचान का संकेतक है।
28. सामाजिक विभाजन की स्थिति कब पैदा होती है ?
उत्तर ⇒ जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय में हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है।
29. सामाजिक राजनीति के परिणाम किन तीन बातों पर निर्भर करते हैं ?
उत्तर ⇒ स्वयं की पहचान की चेतना, समाज के विभिन्न समुदायों की मांगों को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका तथा सरकार की माँगों के प्रति सोच पर सामाजिक राजनीतिक के परिणाम निर्भर करते हैं।
30. श्रीलंका और भारत में सामाजिक विभाजन का आधार क्या है ?
उत्तर ⇒ श्रीलंका में समाजिक विभाजन भाषा और क्षेत्र दोनों आधार पर दिखाई देता है जबकि भारत में सामाजिक विविधता कई रूपों में है। भाषा, क्षेत्र, संस्कृति, धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भारत में सामाजिक विभाजन है।
31. सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का एक कारण बताएँ।
उत्तर ⇒ सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का सबसे मुख्य कारण जन्म माना जाता है। जन्म के कारण ही कोई व्यक्ति किसी विशेष समुदाय का सदस्य बन जाता है। सवर्ण, दलित, मुस्लिम, ईसाई जैसे समुदायों की सदस्यता जन्म आधारित होती है। सामाजिक विभेद यहीं से पनपता है।
32. विविधता राष्ट के लिए कब घातक बन जाती है?
उत्तर ⇒ एक सीमा में रहने पर विविधता राष्ट्र के लिए उपयोगी होती है। सीमा का उल्लंघन होते ही सामाजिक विभाजन और आपसी संघर्ष शुरू हो जाता है। ऐसी स्थिति में ही विविधता राष्ट्र के लिए घातक बन जाती है। श्वेत और अश्वेत का संघर्ष, हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के बीच दंगा, प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक के बीच संघर्ष इसके उदाहरण हैं।