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1. मानव का मादा जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाएँ। मानव में निषेचन प्रक्रिया एवं भ्रूण विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर⇒

स्त्री का जनन तंत्र (साइड से देखने पर)चित्र : स्त्री का जनन तंत्र (साइड से देखने पर)

निषेचन प्रक्रिया एवं भ्रूण विकास – मानव में मैथुन के समय शुक्राणुयोनिमार्ग में स्थापित होते हैं, जहाँ से ऊपर की ओर यात्रा करके अंडवाहिका तकपहुँच जाते हैं और अंडकोशिका से मिल जाते हैं। इसे ही निषेचन कहते हैं।
निषेचन के पश्चात् निषेचित अंड अथवा युग्मनज गर्भाशय में स्थापित हो जातेहैं तथा विभाजन करने लगते हैं। इसे ही भ्रूण कहते हैं। भ्रूण को माँ के रूधिर सेपोषण मिलने लगता है। यह काम प्लेसेंटा द्वारा होता है, जो एक तश्तरीनुमा संरचना होती है। प्लेसेंटा गर्भाशय की भित्ति में फँसी होती है। इसमें भ्रूण की ओर ऊतक में प्रवर्ध होते हैं। माँ के उदर में रक्त स्थान होते हैं जो प्रबर्ध को आच्छादित करते हैं। इस प्रकार, विभाजन और पोषण के साथ 9 महीने तक गर्भाशय में भ्रूण विकसित होता रहता है।


2. एकल जीवों में प्रजनन की विधि की व्याख्या करें।

उत्तर⇒ एकल जीवों में प्रजनन या जनन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
(i) अलैंगिक जनन (ii) लैंगिक जनन।
अलैंगिक जनन के लिए नर एवं मादा के जनन अंगों का कोई उपयोग नहीं होता है। अतः एकल जीव प्रायः अलैंगिक जनन ही करते हैं। लैंगिक जनन के लिए नरऔर मादा जनन अंगों का पारस्परिक सम्मिलन आवश्यक होता है। अतः इसके लिएकिसी जाति के दो व्यक्तियों (एक नर, एक मादा) की आवश्यकता होती है।
एकल जीव जैसे अमीबा आदि में जनन अलैंगिक विधियों से होता है। इसमें कूटपाद आगे बढ़ता है। इससे कोशिका पर खींचाव उत्पन्न होता है। सभी कोशिकांगदो भागों में विभक्त हो जाते हैं। दोनों खण्ड बीज से टूटकर अलग हो जाते हैं। इसप्रकार नई पुत्री कोशिका निर्मित होती है।

अमीवा में द्विखंडन

चित्र : अमीवा में द्विखंडन


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3. नर-जनन तंत्र का नामांकित चित्र बनाएँ एवं उसके कार्यों का वर्णन करें। अथवा, मानव नर-जननांगों का वर्णन करें।

उत्तर⇒ मनुष्य के नर-जनन तंत्र में निम्नलिखित अंग आते हैं –

(i) वृषण- मनुष्य में एक जोड़ी वृषण होते हैं जो वृषण कोश में बन्द रहते हैं। वृषण में शुक्राणु उत्पन्न होते हैं। वृषण से शुक्राणु निकलने के बाद लगभग 48 घंटे तक जीवित रहते हैं। शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है । वृषणकोष शुक्राणुओं को शरीर के ताप से 1-3°C निम्न ताप प्रदान करते हैं।

वृषण के कार्य हैं – (क) शुक्राणु उत्पन्न करना, तथा (ख) नर लिंग हॉर्मोन-टेस्टोस्टीरोन की उत्पत्ति तथा स्रावण ।
यदि वृषण देहगुहा में ही रह जाते हैं तो बन्ध्यता उत्पन्न होती है।

मानव का जनन तंत्र

चित्र : मानव का जनन तंत्र

(ii) एपीडिडिमिस- यह एक नलिकाकार संरचना होती है जो वृषण के साथसमय शुक्राणु मजबूती से जुड़ी रहती है। यह सेमिनीफेरस नलिकाओं से जुड़ी रहती है ओर शुक्राणुओं के लिए एक संचय घर का कार्य करती है।
(iii) शुक्राशय- एपीडिडिमिस से शुक्राणु वाहिनी द्वारा शुक्राणु शुक्राशय मेंआते हैं जहाँ ये पूरी तरह परिपक्व होते हैं तथा इनमें कुछ स्राव मिल जाते हैं।
(iv) प्रोस्टेट ग्रन्थि- यह ग्रन्थि कुछ विशिष्ट गंध या स्राव स्रावित करती है की ओर ऊतक जो कि शुक्र रस में मिल जाते हैं।
(v) मूत्रमार्ग- यह वह मार्ग है जिसमें से होकर मूत्र बाहर आता है। यहभ्रूण विकसित मूत्रमार्ग एक पेशीय अंग से निकलता है जिसे शिश्न कहते हैं। शिश्न का उपयोगमूत्र करने के साथ-साथ शुक्राणुओं (शुक्ररस) को निकालने के लिये भी किया जाता है।


4. मादा-जनन अंगों का सचित्र वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ मादा-जनन तंत्र में निम्नलिखित जनन अंग आते हैं-

(i) अण्डाशय – मादा में एक जोड़ी अण्डाशय होते हैं जो कि उदरीय गुहिका में स्थित होते हैं। जन्म के समय प्रत्येक अण्डाशय में 2,50,000 से 5,00,000 तक अण्डाणु होते हैं, लेकिन जीवन काल में उनमें से अधिकतर नष्ट हो जाते हैं और केवल 400 अण्डाणु ही परिपक्व होकर मादा द्वारा अपने जीवनकाल में छोड़े जाते भी कोशिकांग हैं। इसके अतिरिक्त अण्डाशय दो हॉर्मोन-एस्ट्रोजन तथा प्रोजिस्टीरोन भी उत्पन्न करता है।

स्त्री का जनन तंत्र (साइड से देखने पर)

चित्र : स्त्री का जनन तंत्र (साइड से देखने पर)

(ii) अंडवाहिनी – अण्डाशय के पास से अंडवाहिनी एक कोप की तरह प्रारम्भ होती है। यह एक पेशयी, पतली तथा कुण्डलित नलिका होती है जो पीछे की ओर गर्भाशय से मिलती है । अंडवाहिनी के आगे कीप वाला हिस्सा अण्डाशय में अंडोत्सर्ग के समय अण्डाणु को पकड़कर अण्डवाहिनी में छोड़ देता है जहाँ से यह गर्भाशय में पहुँच जाता है।

(iii) गर्भाशयं – यह एक खोखला पेशीयुक्त अंग है जहाँ भ्रूण का विकास होता है। यह मूत्राशय तथा मलाशय के बीच में होता है। यह सर्विक्स द्वारा योनि में खुलता है। गर्भाशय की दीवार पेशीय तथा मोटी होती है

(iv) योनि – यह एक नलिकाकार संरचना होती है, जो पीछे की ओर सर्विक्स द्वारा गर्भाशय से जुड़ी रहती है तथा आगे की ओर बाहर एक सुराख द्वारा खुलती है जिसे भग कहते हैं। योनि द्वारा ही शुक्राणुओं को ग्रहण किया जाता है। इसके दो फोल्ड होते हैं लेबिया मेजोरा तथा लेबिया माइनोरा । मूत्र द्वार के सामने कलाइटोरिस होता है। यह शिश्न के समकक्ष होता है।


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5. गर्भनिरोधन की विभिन्न विधियाँ कौन-सी हैं?

उत्तर⇒ बच्चों के जन्म को नियमित करने के लिए आवश्यक है कि मादा का निषेचन न हो।
इसके लिए मुख्य गर्भ निरोधक विधियाँ निम्नलिखित हैं –
(i) रासायनिक विधि- अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थ मादा निषेचन को रोक सकते हैं। स्त्रियों के द्वारा गर्भ-निरोधक गोलियाँ प्रयुक्त की जाती हैं। झाग की गोली, जैली, विभिन्न प्रकार की क्रीमें आदि यह कार्य करती हैं।

(ii)शल्य- पुरुषों में नसबंदी तथा स्त्रियों में भी नसबंदी के द्वारा निषेचन रोका जाता है। पुरुषों की शल्य चिकित्सा में शुक्र वाहिनियों को काटकर बाँध दिया जाता है जिससे वृषण में बनने वाले शुक्राणु बाहर नहीं आ पाते । स्त्रियों में अंडवाहिनी को काटकर बाँध देते हैं जिससे अंडाशय में बने अंडे गर्भाशय में नहीं आ पाते।

भौतिक विधि की युक्तियाँ

चित्र : भौतिक विधि की युक्तियाँ

शल्य चिकित्सा द्वारा गर्भनिरोधन

चित्र : शल्य चिकित्सा द्वारा गर्भनिरोधन

(iii) भौतिक विधि – विभिन्न भौतिक विधियों से शुक्राणुओं को स्त्री के गर्भाशय में जाने से रोक दिया जाता है । लेगिक संपर्क में निरोध आदि युक्तियों का प्रयोग इसी के अंतर्गत आता है।


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6. जीवों में विभिन्नता स्पीशीज के लिए तो लाभदायक है, परन्तु व्यष्टि के लिए आवश्यक नहीं है, क्यों?

उत्तर⇒ अपनी जनन क्षमता का उपयोग कर जीवों की समष्टि पारितंत्र में स्थान अथवा निकेत ग्रहण करती हैं। जनन काल में DNA प्रतिकृति का अविरोध जीव की शारीरिक संरचना एवं डिजाइन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं जो उसे विशिष्ट निकेत के योग्य बनाती है। यदि एक समष्टि अपने निकेत के अनुकूल तथा निकेत में कुछ उग्र परिवर्तन आते हैं तो ऐसी अवस्था में समष्टि का समूल विनाश भी संभव है परंतु यदि समष्टि के जीवों में भिन्नता होगी तो उनके जीवित रहने की कुछ संभावना है। अतः यदि शीतोष्ण जल में पाये जाने वाले जीवाणुओं की कोई समष्टि है तथा वैश्विक ऊष्मीकरण के कारण जल का ताप बढ़ जाता है जो अधिकतर जीवाणु व्यष्टि मर जाएँगी, परंतु उष्ण प्रतिरोधी क्षमता वाले कुछ परिवर्त जीवित रहते हैं तथा वृद्धि करते हैं। अतः, विभिन्नताएँ स्पीशीज की उत्तजीविता बनाये रखने में उपयोगी हैं।


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7. मुकुलन क्या है ? हाइड्रा तथा स्पंज में मुकुलन द्वारा जनन कैसे होता है?

उत्तर⇒ शरीर पर एक ऊर्ध्व संरचना बनती है जिसे मुकुल कहते हैं। शरीर का केन्द्रक दो भागों में विभक्त हो जाता है और उनमें से एक केन्द्रक मुकुल में आ जाता है। मुकुल पैतृक जीव से अलग होकर वृद्धि करता है और पूर्ण विकसित जीव बन जाता है। जैसे – यीस्ट, हाइड्रा तथा ल्यूकोसोलिनिया (स्पंज) आदि ।

ल्यूकोसीलीनिआ में मुकुलन

चित्र : ल्यूकोसीलीनिआ में मुकुलन

हाइड्रा में मुकुलन

चित्र : हाइड्रा में मुकुलन


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8. रजोधर्म का वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ स्त्रियों में मासिक धर्म स्त्रियों में यह चक्र 13-15 वर्ष की आयु में प्रारम्भ होता है। यह यौवनावस्था होती है। स्त्रियों में मासिक धर्म 28 दिन का होता है। यही समय अण्डाणु का पूर्ण जीवन काल होता है।
इसकी अवस्थायें निम्नलिखित हैं –
(i) 1-5वें दिन तक पुराना अंडाणु रजोधर्म के समय बाहर आता है। अंडाशय में नये अंडाणु की वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है।
(ii) 6-12वें दिन तक अंडाशय से अंडाणु परिपक्व होकर ग्रेफियन फॉलिकिल बन जाता है।
(iii) 13-14वें दिन में ग्रफियन फॉलिकिल अंडाशय से बाहर आकर अंडवाहिनी में पहुँच जाता है। ये अंडोत्सर्ग कहलाता है ।
(iv) 15-16वें दिन अंडाणु अंडवाहिनी और फिर गर्भाशय में आकर शुक्राणु से मिलने की प्रतीक्षा करता है। यदि इस बीच निषेचन होता है हो अंडाणु युग्मनज में परिवर्तित हो जाता है, जो विकास करके 9 माह में शिशु बनकर जन्म लेता है।
(V) निषेचन नहीं होता है तो 17-28वें दिन तक यह निष्क्रिय हो जाता है । 28 दिन बाद रजोधर्म से बाहर आता है।
(vi) यह चक्र एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टीरोन हार्मोन्स द्वारा नियंत्रित रहता है। स्त्रियों में रजोनिवृत्ति 45-50 वर्ष तक होती है। लड़कों में किशोरावस्थाका प्रारम्भ 13 से 15 वर्ष में होता है। इनमें कोई चक्र नहीं होता है। शुक्राणओं का निर्माण जीवन भर होता है।


9. जंतुओं में लैंगिक जनन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर⇒ जंतुओं में लैंगिक जनन विभिन्न विधियों द्वारा होता है । लैंगिक जनन के समय मोनोसिस्टिस जैसे एक कोशिकीय जीव आकार तथा आकृति में समान होते हैं। मलेरिया परजीवी में दोनों जीव असमान होते हैं। बहुकोशिकीय जीवों में नर शुक्राणु तथा मादा अंडा उत्पन्न करती है। उभयलिंगी जीवों में एक ही जीव एक समय में शुक्राणु उत्पन्न करता है तो दूसरे में अंडा ।
मेंढक में नर तथा मादा दोनों जीव संभोग करते हैं। अपने-अपने युग्मकों को पानी में छोड़ देते हैं। शुक्राणु अंडों को पानी में ही निषेचित करता है। ऐसे निषेचन को बाह्य निषेचन कहते हैं।
मवेशी, कुत्ता, कीट, मकड़ी, मनुष्य तथा ऐसे ही अन्य जंतुओं में नर अपने शुक्राणु को मादा के शरीर के अन्दर छोड़ते हैं।  शुक्राणु अंडों को मादा के शरीर के अन्दर ही निषेचित करते हैं । ऐसे निषेचन को आंतरिक निषेचन कहते हैं । निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज बनता है। निषेचन के तुरन्त बाद युग्मनज विकसित होना आरम्भ कर देता है। युग्मकों में अपने माता-पिता की तुलना में आधी संख्या में गुणसूत्र (क्रोमोसोम) होते हैं। निषेचन से जब दो युग्मक जिनमें आधी संख्या में क्रोमोसोम होते हैं, मिलते हैं तब जीव में क्रोमोसोम की संख्या पूरी हो जाती है।


10. पौधों में कायिक प्रवर्धन की किन्हीं तीन कृत्रिम विधियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ कायिक जनन की तीन कृत्रिम विधियाँ -कायिक प्रवर्धन की कृत्रिम विधियों में रोपण, कलम लगाना, दाब कलम तथा ऊतक संवर्धन प्रमुख हैं।

(i) कलम लगाना – इस विधि में तना, पत्तियों तथा जड़ों का प्रयोग किया है। तने की कमलें बनाकर जिसमें दो पर्वसन्धियाँ होती हैं, भूमि में गाड़ देते हैं। कुछ समय बाद उनसे जड़ें तथा प्ररोह विकसित हो जाते हैं । उदाहरण-गुलाब तथा गन्ना, गुडहल व अंगूर । कक्षस्थ कलिकाओं सहित तने के टुकड़ों को मातृ पौधे से अलग समसूत्रीय ढंग से होता ।कलम लगानाचित्र: कलम लगाना

(ii) दाब लगाना – इसे गूटी लगाना भी कहा जाता है। कुछ पौधों के तने के भाग भूमि के समीप होते हैं। उन्हें झुकाकर जमीन में मिट्टी में दबा देते हैं। वहीं पर कुछ समय बाद जड़ें निकल आती हैं। उसे मातृ पौधे से अलग कर लेते हैं। पूर्ण जीव बनता है। इस प्रकार नया पौधा प्राप्त होता है। उदाहरण-नींबू, मोगरा, अमरूद, गुड़हल, जैसमीन, वोगेनविलिया आदि ।

दाब लगाना

चित्र : दाब लगाना

(iii) कली लगाना – इस विधि में साधारण जाति के पौधे के तने पर छाल की गहराई तक एक तिरछा काट लगा देते हैं। उसी काट में एक अच्छे पौधे की कलिका को उसी जाति के पौधे से रोपित कर देते हैं। कुछ समय बाद कलिका पौधे से जुड़ जाती है और नई शाखा बन जाती है। इसे काट कर अलग कर देते हैं। यह विधि गुलाब, अंगूर, शरीफा, संतरा आदि में अपनाई जाती है।

कली लगानाचित्र: कली लगाना


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11. अमीबा में अलैंगिक जनन का वर्णन कीजिए।

उत्तर⇒ अमीबा में अलैंगिक जनन तीन प्रकार का होता है –

(i) विखंडन – इसके द्वारा जनन एक-कोशिकीय जीव अमीबा में होता है। जब जीव पूर्ण विकसित हो जाता है तब यह भागों में विभाजित हो जाता है। पहले केन्द्रक विभाजित होता है और फिर कोशिका द्रव्य । विखंडन से जब दो जीव बनते हैं तो इस प्रक्रिया को द्विखंडन कहते हैं। इसमें दो संतति कोशिकायें बनती हैं। यह समसूत्रीय ढंग से होता है तथा अनुकूल परिस्थितियों में होता है।

अमीबा में द्विखंडन

चित्र : अमीबा में द्विखंडन

(ii) बहुखंडन – अमीबा में अनेक केन्द्रक केन्द्रक परिंकूल दशाओं में अनेक भागों में टूट जाता है तथा प्रत्येक से एक नये जीव का निर्माण होता है।

(iii) पुनरुदभवन – अमीबा को अनेकों टुकड़ों में तोड़ने पर प्रत्येक टुकड़े (यदि उसमें केन्द्रक का भाग है) से पूर्ण जीव बनता है।

अमीबा में बहुखडनचित्र : अमीबा में बहुखडन


Class 10th Science ( विज्ञान ) Subjective Question 2023

Science Subjective Question
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2. मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
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