1. मानव मूत्र के विधि का वर्णन करें।अथवा, मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ वृक्क एवं इसके अनेक सहायक अंग मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र कहते हैं। वृक्क उत्सर्जन तंत्र का प्रमुख अंग है जो केवल उत्सर्जी पदार्थों को उपयोगी पदार्थों से छानकर अलग कर देता है । वृक्क भूरे रंग का, सेम के बीज के आकार की संरचनाएँ हैं, जो कि उदरगुहा में कशेरूक दंड के दोनों तरफ होती है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 cm लंबा, 6 cm चौड़ा और 2.5 cm मोटा होता है। यकृत की वजह से दायाँ वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है जबकि भीतरी किनारा धसा होता है जिसे हाइलम कहते हैं और इसमें से मूत्र नलिका निकलती है । मूल नलिका जाकर एक पेशीय थैले जैसी संरचना में खुलती है जिसे मूत्राशय कहते हैं।
चित्र : मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र
2. एक प्रयोग द्वारा दर्शाएँ कि प्रकाश-संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण के लिए पर्णहरित आवश्यक होता है, इसकी पुष्टि के लिए निम्नलिखित प्रयोग किया जाता है-
एक क्रोटन पौधे के गमले को 24-48 घंटे के लिए अंधकार में रख दिया जाता है। फिर एक निश्चित अवधि के पश्चात् इसकी एक पत्ती को तोड़कर उसका स्टॉर्च परीक्षण आयोडीन से किया जाता है। निरीक्षण करने पर यह देखा जाता है कि पत्ती का वह स्थान जो हरा था, नीला हो गया और पीले भाग पर आयोडीन का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। प्रयोग द्वारा यह स्पष्ट हो जाता है कि हरे भाग में पर्णहरित उपस्थित होता है जिससे वहाँ प्रकाश-संश्लेषण द्वारा स्टॉर्च का निर्माण हुआ, अन्य स्थानों पर नहीं। अतः इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है।
3. वृक्काणु (नेफरॉन) की संरचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ वृक्काणु की संरचना-वृक्काणु गुर्दे की संरचनात्मक इकाई है। इसमें एक नलिका होता है जो एक ओर संग्राहक वाहिनी से जुड़ा रहता है तथा एक कप की आकृति की संरचना से दूसरी ओर।
इस कप की आकृति की संरचना को बोमेन संपुट कहते हैं । प्रत्येक बोमेन संपुट में केशिकाओं के गुच्छे कप के अन्दर होते हैं जिसे कोशिका गुच्छ (ग्लोमेरुलस) कहते हैं। कोशिका गुच्छ में रुधिर एफरेंट धमनी द्वारा प्रवेश करता है तथा इफरेंट धमनी द्वारा बाहर निकलता है।
चित्र : नेफरॉन की संरचना
नेफरॉन के कार्य –
(i) छानना – रुधिर, बोमेन संपुट के अन्दर कोशिका गुच्छ की केशिकाओं द्वारा छाना जाता है। निस्यंद वृक्काणु के नलिकाकार हिस्सों से गुजरता है। इस निस्यंद में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण तथा जल की अत्यधिक मात्रा होती है।
(ii) पुनः अवशोषण – जैसे-जैसे निस्यद नलिका में बहता जाता है वैसे-वैसे लाभप्रद पदार्थ, जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल, लवण तथा जल, विशेष रूप से वृक्काणु को घेरती हुई केशिकाओं द्वारा अवशोषित कर दिया जाता है। पानी की कितनी मात्रा का पुनः अवशोषण हो, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर को कितने पानी की आवश्यकता है तथा उस उत्सर्जक पदार्थ की मात्रा क्या है जिसका उत्सर्जन होना है।
(iii) मूत्र – पुनः अवशोषण के पश्चात् जो निस्यद बचता है, उसे मूत्र कहते हैं। मूत्र में घुले हुए नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जक, जैसे-यूरिया, यूरिक अम्ल, अतिरिक्त लवण तथा पानी होता है।
मूत्र कलेक्टिंग डक्टों द्वारा वृक्काणु से एकत्रित होती है और फिर यूरेटर में ले जाई जाती है।
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4. मनुष्यों में पाचन की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।
उत्तर⇒ मनुष्यों में पाचन क्रिया – मनुष्य की पाचन क्रिया निम्नलिखित चरणों में विभिन्न अंगों में पूर्ण होती है-
(i) मुखगुहा में पाचन – मनुष्य मुख के द्वारा भोजन ग्रहण करता है। मुख में स्थित दाँत भोजन के कणों को चबाते हैं जिससे भोज्य पदार्थ छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाता है। लार-ग्रंथियों से निकली लार भोजन में अच्छी तरह से मिल जाती है । लार में उपस्थित एंजाइम भोज्य पदार्थ में उपस्थित मंड (स्टार्च) को शर्करा (ग्लूकोज) में बदल देता है। लार भोजन को लसदार चिकना और लुग्दीदार बना देती है, जिससे भोजन ग्रसिका में से होकर आसानी से आमाशय में पहुंच जाता है।
(ii) आमाशय में पाचन क्रिया – जब भोजन आमाशय में पहुँचता है तो वहाँ भोजन का मंथन होता है जिससे भोजन और छोटे-छोटे कणों में टूट जाता है। भोजन में नमक का अम्ल मिलता है जो माध्यम को अम्लीय बनाता है तथा भोजन को सड़ने से रोकता है। आमाशयी पाचक रस में उपस्थित एंजाइम प्रोटीन को छोटे-छोटे अणुओं में तोड़ देते हैं।
(iii) ग्रहणी में पाचन – आमाशय में पाचन के बाद जब भोजन ग्रहणी में। पहुँचता है तो यकृत में आया पित्त रस भोजन से अभिक्रिया करके वसा का पायसीकरण कर देता है तथा माध्यम को क्षारीय बनाता है जिससे अग्नाशय से आये पाचक रस में उपस्थित एंजाइम क्रियाशील हो जाते हैं और भोजन में उपस्थित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का पाचन कर देते हैं।
(iv) क्षुद्रांत्र में पाचन – ग्रहणी में पाचन के बाद जब भोजन क्षुद्रांत्र में पहुँचता है तो वहाँ आंत्र रस में उपस्थित एंजाइम बचे हुए अपचित प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का पाचन कर देते हैं। आस्त्र की विलाई द्वारा पचे हुए भोजन का अवशोषण कर लिया जाता है तथा अवशोषित भोजन रक्त में पहुंचा दिया जाता है।
(v) बड़ी आंत्र ( मलाशय ) में पाचन – क्षुद्रांत्र में भोजन के पाचन एवं अवशोषण के बाद जब भोजन बड़ी आंत्र में पहुँचता है तो वहाँ पर अतिरिक्त जल का अवशोषण कर लिया जाता है, बड़ी आंत्र में भोजन का पाचन नहीं होता। भोजन का अपशिष्ट (अतिरिक्त) भाग यहाँ पर एकत्रित होता रहता है तथा समय-समय पर मल द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
5. मानव श्वसन तंत्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ मानव के श्वसन तंत्र का कार्य शुद्ध वायु को शरीर के भीतर भोजन तथा अशुद्ध वायु को बाहर निकलना है।
इसके प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं –
(i) नासाद्वार एवं नासागुहा – नासाद्वार से वायु शरीर के भीतर प्रवेश करती है। नाक में छोटे-छोटे और बारीक बाल होते हैं जिनसे वाय छन जाती है। उसकी धूल उनसे स्पर्श कर वहीं रुक जाती है इस मार्ग में श्लेष्मा की परत इस कार्य में सहायता करती है। वाय नम हो जाती है।
(ii) ग्रसनी – ग्रसनी ग्लॉटिस नामक छिद्र से श्वासनली में खुलती है। जब हम भोजन करते हैं तो ग्लॉटिस त्वचा के एक उपास्थियुक्त कपाट एपिग्लाटिस से ढंका रहता है।
चित्र : मानव श्वसन तंत्र
(iii) श्वास नली – उपास्थित से बनी हुई श्वासनली गर्दन से नीचे आकर श्वसनी बनाती है। यह वलयों से बनी होती है तो सुनिश्चित करते हैं कि वायु मार्ग में रुकावट उत्पन्न न हो।
(iv) फुफ्फुस – फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाते हैं जो गुब्बारे जैसी रचना में बदल जाता है । इसे कूपिका कहते हैं । कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है।
(v) कार्य – जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इससे वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वाय फुफ्फुस के भीतर चूस ली जाती है । वह विस्तृत कूपिकाओं को ढक लेती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है । श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है, फुफ्फुस सदैव वायु का विशेष आयतन रखते हैं जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
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6. मनुष्य के हृदय की संरचना और क्रिया-विधि समझाइए।
उत्तर⇒
चित्र : मनुष्य के हृदय की खड़ी काट
संरचना – मनुष्य का हृदय चार भागों में कोष्ठों में बँटा रहता है-अग्र दो भाग आलिंद कहलाते हैं । इनसे एक बायाँ आलिंद तथा दूसरा दायाँ आलिंद होता है। पश्व दो भाग निलय कहलाता है जिनमें एक बायाँ निलय तथा दूसरा दायाँ निलय होता है। बाँयें आलिंद एवं बाँयें निलय के बीच त्रिवलनी कपाट तथा दाएँ आलिंद एवं दाएँ निलय के बीच त्रिवलीन कपाट होते हैं। ये वाल्व निलय की ओर खुलते हैं। बाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार द्वारा महाधमनी से तथा दाएँ निलय का संबंध अर्द्धचंद्राकार कपाट द्वारा फुफ्फुस धमनी से होता है। दाएँ आलिंद से महाशिरा आकर मिलती है तथा बाएँ आलिंद से फुफ्फुस शिरा आकर मिलती है।।
हृदय की क्रियाविधि – हृदय के आलिंद व निलय में संकुचन व शिथिलन दोनों क्रियाएँ होती हैं। यह क्रियाएँ एक निश्चित क्रम में निरंतर होती हैं । हृदय की एक धड़कन या स्पंदन के साथ एक कर्डियक चक्र पूर्ण होता है।
एक चक्र में निम्नलिखित चार अवस्थाएँ होती हैं-
(i) शिथिलन – इस अवस्था में दोनों आलिंद शिथिलन अवस्था में रहते हैं और रुधिर दोनों आलिंदों में एकत्रित होता है।
(ii) आलिंद संकचन – आलिंदों के संकुचित होने को आलिंद संकुचन कहते हैं । इस अवस्था में आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं और आलिंदों से रुधिर निलयों में जाता है। दायाँ आलिंद सदैव बाँयें आलिंद से कुछ पहले संकुचित होता है।
(iii) निलय संकुचन – निलयों के संकुचन को निलय संकुचन कहते हैं, जिसके फलस्वरूप आलिंद-निलय कपाट बंद हो जाते हैं एवं महाधमनियों के अर्द्धचंद्राकार कपाट खुल जाते हैं और रुधिर महाधमनियों में चला जाता है।
(iv) निलय शिथिलन – संकुचन के पश्चात् निलयों में शिथिलन होता है और अर्द्धचंद्राकार कपाट बंद हो जाते हैं। निलयों के भीतर रुधिर दाब कम हो जाता है । जिससे आलिंद निलय कपाट खुल जाते हैं।
7. रक्त क्या है? इसके संघटन का वर्णन कार्य के साथ करें।
उत्तर⇒ रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है जो उच्च बहुकोशिकीय जन्तुओं में एक तरल परिवहन माध्यम है, जिसके द्वारा शरीर के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थानों में पदार्थों का परिवहन होता है।
मानव रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं –
(a) द्रव घटक, जिसे प्लाज्मा कहते हैं एवं (b) रक्त कोशिकाएँ।
(a) प्लाज्मा : यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है, जो आयतन के हिसाब से पूरे रक्त का 55% होता है। इसमें करीब 90% जल, 7% प्रोटीन, 0.09% . अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ विद्यमान होते हैं।
इनमें उपस्थित प्रोटीन को प्लाज्मा प्रोटीन कहते हैं, जिनमें प्रमुख हैं-फाइब्रिनोजन, प्रोओबिन तथा हिपैरिन। फाइब्रिनोजनरहित प्लाज्मा को सीरम कहते हैं।
(b) रक्त कोशिकाएँ : आयतन के हिसाब से रक्त कोशिकाएँ कुल रक्त का 45 प्रतिशत भाग हैं।
ये निम्नांकित. तीन प्रकार की होती हैं – (i) लाल रक्त कोशिका (ii) श्वेत रक्त कोशिका तथा (iii) रक्त पट्टिकाणु ।
(i) लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell/RBC :- इन्हें एरीथ्रोसाइट्स (erythrocytes) भी कहते हैं, जो उभयनतोदर डिस्क की तरह रचना होती हैं। इनमें केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं अंतर्द्रव्यजालिका जैसे कोशिकांगों का अभाव होता है। इनमें एक प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन पाया जाता है. जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है। इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं से संयोजन की होती है। इसके इस विलक्षण गुण के कारण इसे ऑक्सीजन का वाहक कहते हैं। मनुष्य में इनकी जीवन अवधि 120 दिनों की होती है, और इनका निर्माण अस्थि-मज्जा में होता है। मानव के प्रति मिलीलीटर रक्त में इनकी संख्या 5-5.5 मिलियन तक होती है।
(ii) श्वेत रक्त कोशिका (White Blood Cell/WBC) :- ये अनियमित आकार की न्यूक्लियसयुक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन जैसे वर्णक नहीं पाये जाते हैं, जिसके कारण ये रंगहीन होती हैं। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (leucocytes) भी कहते हैं। मानव के प्रति मिलीलीटर में इनकी संख्या 5000-6000 होती है। संक्रमण की स्थिति में इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है।
ये निम्नांकित दो प्रकार की होती है – (a) ग्रैनुलोसाइट्स एवं (b) एग्रैनुलोसाइट्स।
(a) ग्रैनुलोसाइट्स अपने अभिरंजन गुण के कारण तीन प्रकार की होती हैं – (i) इयोसिनोफिल (ii) बसोफिल एवं (iii) न्यूट्रोफिल।
इनकी कोशिकाद्रव्य कणिकामय होती है। इयोसिनोफिल एवं न्यूट्रोफिल्स फैगोसाइटोसिस द्वारा हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करते हैं।
(b) एग्रैनुलोसाइट्स निम्नांकित दो प्रकार के होते हैं – (i) मोनोसाइट्स एवं (ii) लिम्फोसाइट्स।
इनमें उपस्थित केन्द्रक में अनेक घुडियाँ पाई जाती हैं। इनमें मोनोसाइट्स का कार्य भक्षण करना एवं लिम्फोसाइट्स का काम एंटिबॉडी का निर्माण करना होता है।
(iii) रक्त पट्टिकाणु (Blood Platlets) :- ये बिम्बाणु या ओम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। ये रक्त का थक्का बनने (blood clotting) में सहायक होते हैं।
रक्त के कार्य – रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है, क्योंकि वह अपने प्रवाह के दौरान शरीर के सभी ऊतकों का संयोजन करता है।
वैसे रक्त के तीन प्रमुख कार्य हैं – (a) पदार्थों का परिवहन, (b) संक्रमण से शरीर की सुरक्षा एवं (c) शरीर के तापमान का नियंत्रण करना।
रक्त के निम्नलिखित अन्य कार्य हैं-
(a) यह फेफड़े से ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।
(b) यह शरीर की कोशिकाओं से CO2 को फेफड़े तक लाता है, जो श्वासोच्छ्वास के द्वारा बाहर निकल जाता है।
(c) यह पचे भोजन को छोटी आँत से शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचाता है।
(d) अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स को उपयुक्त अंग तक पहुँचाता है।
(e) यह यकृत से यूरिया को गुर्दा तक पहुँचाता है।
(F) यह शरीर को विभिन्न रोगाणुओं के संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि रक्त के घटक WBC शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र का निर्माण करते हैं।
(g) रक्त स्तनधारियों एवं पक्षियों के शरीर के तापमान को स्थिर बनाये रखता है।
(h) रक्त पट्टिकाणु रक्त जमने में सहायक होते हैं।
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8. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?
उत्तर⇒ श्वसन एक जटिल पर अति आवश्यक प्रक्रिया है। इसमें ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है तथा ऊर्जा मुक्त करने के लिए खाद्य का ऑक्सीकरण होता है।
C6H12O6+6O2 → 6CO2 +6H2O+ ऊर्जा
श्वसन एक जैव रासायनिक प्रक्रिया है। श्वसन क्रिया दो प्रकार की होती है-
(i) वायवीय श्वसन (ऑक्सी श्वसन) – इस प्रकार के श्वसन में अधिकांश प्राणी ऑक्सीजन का उपयोग करके श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में ग्लूकोज पूरी तरह से कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है।
चूँकि यह प्रक्रिया वायु की उपस्थिति में होती है, इसलिए इसे वायवीय श्वस कहते हैं।
(ii) अवायवीय श्वसन (अनॉक्सी श्वसन) – यह श्वसन प्रक्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होती है । जीवाणु और यीस्ट इस क्रिया से श्वसन करते हैं। इस प्रक्रिया में इथाइल ऐल्कोहॉल CO2तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।
(iii) ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर – कभी-कभी हमारी पेशी कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। पायरूवेट के विखंडन के लिए दूसरा रास्ता अपनाया जाता है । तब पायरूवेट एक अन्य तीन कार्बन वाले अणु लैक्टिक अम्ल में बदल जाता है। इसके कारण कैम्प हो जाता है।
9. ऑक्सी एवं अनॉक्सी श्वसन में अन्तर लिखें एवं अनॉक्सी श्वसन की क्रियाविधि लिखें।अथवा, वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है ? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
उत्तर⇒
S.N. | वायवीय श्वसन | अवायवीय श्वसन |
(i) |
खाद्य पदार्थों के विश्लेषण के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। | इस प्रकार के श्वसन में ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती। |
(ii) |
कोशिका के कोशिका द्रव्य में होनेवाली क्रिया ग्लाइकोलिसिस कहलाती है जबकि माइटोकॉण्ड्रिया में होने वाली श्वसनीय क्रिया क्रैब चक्र कहलाती है। | यह क्रिया केवल कोशिका द्रव्य में ही होती है। |
(iii) |
इस क्रिया में 38 ATP अणु दो अणु ही बनते हैं। | इस क्रिया में A.T.P के केवल निर्मित होते हैं। |
(iv) |
इस क्रिया में अन्तिम उत्पाद CO2 तथा जल होता है। | इस क्रिया के अन्तिम उत्पादं इथाइल ऐल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड है। |
(v) |
यह क्रिया सभी जीवधारियों में पायी जाती है। | यह क्रिया कुछ ही जीवधारियों में पायी जाती है। |
(vi) |
इस क्रिया में खाद्य पदार्थ का पूर्णरूप से अपचयन होता है। | इस क्रिया में भोजन का अपूर्ण रूप से अपचयन होता है। |
यीस्ट में अनॉक्सी श्वसन – यीस्ट में श्वसन क्रिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। ग्लूकोज या शर्करा का विघटन इथाइल एल्कोहॉल और CO2 में होता है साथ ही ऊर्जा मुक्त होती है।
10. जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता क्यों होती है ? कोई पाँच कारण लिखिए।
उत्तर⇒ वह विधि जिसके द्वारा पोषक तत्वों को ग्रहण कर उसका उपयोग करते हैं पोषण कहलाता है।
जीवधारियों में पोषण की आवश्यकता निम्नलिखित कारण से जरूरी है –
(i) ऊर्जा – पोषण से जीवों को ऊर्जा की वाद्य आपूर्ति होना आवश्यक है, नहीं तो जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
(ii) जैविक क्रियाओं – जैविक क्रियाओं के संपादन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा की प्राप्ति पोषण के द्वारा होता है।
(ii) कोशिकाओं के निर्माण एवं मरम्मत – नई कोशिकाओं और ऊतकों के निर्माण एवं ऊतकों की टूट-फूट की मरम्मत हेतु नये जैव पदार्थों का संश्लेषण भी भोजन के द्वारा ही प्राप्त होता है।
(iv) स्व-पोषण – स्व-पोषण में जीव सरल अकार्बनिक तत्वों से प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण स्वयं करते हैं।
(v) पर-पोषण – पर-पोषण में जीव अपना भोजन अन्य जीवों से जटिल और ठोस पदार्थ के रूप में प्राप्त करते हैं।
11. पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता है ?अथवा, पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है ?
उत्तर⇒ पादप शरीर के निर्माण के लिए आवश्यक जल और खनिज लवणों को अपने निकट विद्यमान मिट्टी से प्राप्त करते हैं।।
(i) जल – हर प्राणी के लिए जल जीवन का आधार है। पौधों में जल जाइलम ऊतकों के द्वारा अन्य भागों में जाता है। जड़ों में धागे जैसी बारीक रचनाओं की बहुत बड़ी संख्या होती है। इन्हें मूलरोम कहते हैं। ये मिट्टी में उपस्थित पानी से सीधे संबंधित होते हैं । मूलरोम में जीव द्रव्य की सांद्रता मिट्टी में जल के घोल की अपेक्षा अधिक होती है । परासरण के कारण पानी मूलरोमों में चला जाता है पर इससे मलरोम के जीव द्रव्य की सांद्रता में कमी आ जाती है और वह अगली कोशिका में चला जाता है। यह क्रम निरंतर चलता रहता है जिस कारण पानी जाइलम वाहिकाओं में पहुँच जाता है । कुछ पौधों में पानी 10-100 cm प्रति मिनट की गति से ऊपर चढ़ जाता है।
चित्र – पानी और खनिज का ऊपर चढ़ना
(ii) खनिज पेड़ – पौधों को खनिजों की प्राप्ति अजैविक रूप में करनी होती है । नाइट्रेट, फॉस्फेट आदि पानी में घुल जाते हैं और जड़ों के माध्यम से पौधों में
प्रविष्ट हो जाते हैं। वे पानी के माध्यम से सीधा जड़ों से संपर्क में रहते हैं। पानी और खनिज मिलकर जाइलम ऊतक में पहुँच जाते हैं और वहाँ से शेष भागों में चले जाते हैं।
जल तथा अन्य खनिज-लवण जाइलम के दो प्रकार के अवयवों वाहिनिकायों एवं वाहिकाओं से जड़ों से पत्तियों तक पहुंचाए जाते हैं। ये दोनों मृत तथा स्थल कोशिका भित्ति से युक्त होती हैं । वाहिनिकाएँ लंबी, पतली, तुर्क सम कोशिकाएँ हैं जिनमें गर्त होते हैं। जल इन्हीं में से होकर एक वाहिनिका से दूसरी वाहिनिका में जाता है। पादपों के लिए वांछित खनिज, नाइट्रेट तथा फॉस्फेट अकार्बनिक लवणों के रूप में मूलरोम द्वारा घुलित अवस्था में अवशोषित कर जड़ में पहुंचाए जाते हैं। यही जड़ें जाइलम ऊतकों से उन्हें पत्तियों तक पहुँचाते हैं।
12. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर⇒ जब हम श्वास अंदर लेते हैं तब हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और डायाफ्राम चपटा हो जाता है। इस कारण वक्षगुहिका बढ़ी हो जाती है और वाय फुफ्फुस के भीतर चली जाती है। वह विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है। रुधिर सारे शरीर से CO को कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है। श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है तब फुफ्फुस वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं। इससे ऑक्सीजन के अवशोषण और कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
चित्र : मानव श्वसन की मूल प्रक्रिया
13. मनुष्य में दोहरे रक्त संचरण की व्याख्या कीजिए तथा इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।अथवा, मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है ?
उत्तर⇒ हृदय दो भागों में बंटा होता है। इसका दायाँ और बायाँ भाग ऑक्सी जनित और विऑक्सीजनित रुधिर को आपस में मिलने से रोकने में उपयोगी सिद्ध होता है । इस तरह का बँटवारा शरीर को उच्च दक्षतापूर्ण ऑक्सीजन की पूर्ति कराता . है। जब एक ही चक्र में रुधिर दोबारा हृदय में जाता है तो उसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं।
इसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
ऑक्सीजन को प्राप्त कर रुधिर फुफ्फुस में आता है । इस रुधिर को प्राप्त करते समय बायाँ अलिंद हृदय में बाँयीं ओर स्थित कोष्ठ बायाँ अलिंद शिथिल रहता है। जब बायाँ निलय फैलता है, तब यह संकुचित होता है, जिससे रुधिर इसमें चला जाता है। अपनी बारी पर जब पेशीय बायाँ निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पंपित हो जाता है। जब दायाँ अलिंद फैलता है तो शरीर से विऑक्सीजनित रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिंद संकुचित होता है, नीचे वाला दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुधिर को दाएँ निलय में भेज देता है जो रुधिर को ऑक्सीजनीकरण के लिए फुफ्फुस में पंप कर देता है । अलिंद की अपेक्षा निलय की .. पेशीय भित्ति मोटी होती है, क्योंकि निलय को पूरे शरीर में रुधिर भेजना होता है। जब अलिंद या निलय संकुचित होते हैं तो वाल्ब उल्टी दिशा में रुधिर प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करते हैं। दोहरे परिसंचरण का संबंध रक्त परिवहन से है। । परिवहन के समय रक्त दो बार हृदय से गुजरता है। अशुद्ध रक्त दाएँ निलय से फेफड़ों में जाता है और शुद्ध होकर बाएँ आलिंद के पास आता है।
इसे पल्मोनरी परिसंचरण कहते हैं।
शुद्ध होने के बाद रक्त दाएँ आलिंद से पूरे शरीर में चला जाता है और फिर अशुद्ध होकर बाएँ निलय में प्रवेश कर जाता है । इसे सिस्टेमिक परिसचरण कहते हैं ।
द्विगुण परिसंचरण को निम्नलिखित चित्रों से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
चित्र : रक्त का आलिंद में बहाव
चित्र : महाधमनी का सिकुड़ना और रक्त का निलय में आना
चित्र : रक्त का महाधमनी में आना
दोहरे परिसंचरण के कारण शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त हो जाती है। उच्च ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे शरीर का उचित तापमान बना रहता है।
14. मानव में वहन तंत्र के घटक कौन-से है ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर⇒ मानव में वहन तंत्र के प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं – हृदय वाहिनियाँ (धमनियाँ, शिरायें), रुधिर (ऑक्सीकृत तथा अनॉक्सीकृत)।
कार्य – हृदय रूधिर को शरीर के विभिन्न अंगों की सभी कोशिकाओं में वितरित करता है।
धमनियाँ रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ले जानेवाली वाहिनियाँ हैं।
शिरायें – शरीर के विभिन्न भागों से रुधिर को एकत्र करके हृदय तक लाने वाली वाहिनियाँ शिराएँ कहलाती हैं।
रुधिर – यह एक गहरे लाल रंग का संयोजी ऊतक है जिसमें तीन प्रकार की कोशिकाएँ स्वतंत्रतापूर्वक तैरती रहती हैं। भोजन, जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य वर्ण्य पदार्थों के अतिरिक्त हॉर्मोंस भी इसी के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में रहते हैं।
लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थिति लाल रंग के पाउडर (हीमोग्लोबिन) का मुख्य कार्य ऑक्सीजन को फेफड़ों से प्राप्त करके शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाना है।
श्वेत रुधिर कणिकाओं का कार्य शरीर में आये हुए रोगाणुओं से युद्ध करके उसे स्वस्थ बनाये रखने में सहायता करना है।
रुधिर प्लेटलेट्स – इन कणिकाओं का मुख्य कार्य शरीर के किसी भाग में चोट लग जाने या घाव हो जाने पर वहाँ थक्का बनाने में सहायता करना है।
15. रुधिर वर्ग क्या है ? इनकी शरीर में क्या आवश्यकता है ?
उत्तर⇒ लाल रक्त कणिकाओं की प्लाज्मा झिल्लियों के ऊपरी तल पर कुछ विशेष प्रकार की प्रोटीन पायी जाती है। ये प्रोटीन दो प्रकार की होती है अर्थात् N और B प्रकार की । इन्हें एंटीजन कहते हैं। दो एंटीबॉडी इन एंटीजन से क्रिया करती हैं जो रुधिर प्लाज्मा में होती है अर्थात् एंटीबॉडी ‘A’ और ‘B’ । एंटीबॉडी A, एंटीजन A से क्रिया करती है और अधिक कठोर हो जाती है जिससे कि जो लाल रुधिर कणिकायें जिनमें ये एंटीजन होते हैं, एक साथ मिल जाती हैं। इसी प्रकार एंटीबॉडी ‘B’, एन्टीजन ‘B’ को अधिक कठोर बना देती है। कार्ल लैंडस्टीनर ने रुधिर वर्ग AB का पता लगाया था। रुधिर वर्ग प्रोटीन की पहचान करने के बाद बनते हैं जो प्रोटीन का संश्लेषण करती है।
रुधिर वर्ग चार प्रकार के होते हैं – (i) रुधिर वर्ग ‘A’, (ii) रुधिर वर्ग ‘B’, (iii) रुधिर वर्ग AB, (iv) रुधिर वर्ग ‘0’ ।
(i) रुधिर वर्ग ‘A’ – इस वर्ग के मनुष्य में एंटीजन A होता है और एंटीबॉडी B होता है।
(ii) रुधिर वर्ग ‘B’ – इसमें एंटीजन A लाल रक्त कणिकाओं में और एंटीबॉडी B प्लाज्मा में होता है।
(ii) रुधिर वर्ग ‘AB’ – इसमें लाल रक्त कणिकाओं में एंटीजन A और B तथा प्लाज्मा में एंटीबॉडी नहीं पाये जाते हैं।
(iv) रुधिर वर्ग ‘O’ – इसमें कोई एंटीजन नहीं होता है, लेकिन प्लाज्मा में दोनों प्रकार के एंटीजन A और B पाये जाते हैं।
16. स्टोमेटा के खुलने और बंद होने की प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ रुधिरों का खुलना एवं बंद होना रक्षक कोशिकाओं की सक्रियता पर निर्भर करता है। इसकी कोशिका भित्ति असमान मोटाई की होती है। जब यह कोशिका स्फीति दशा में होती है तो छिद्र खुलता है व इसके ढीली हो जाने पर यह बंद हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि द्वार कोशिकाएं आस-पास की कोशिकाओं से पानी को अवशोषित कर स्फीति की जाती है। इस अवस्था में कोशिकाओं में पतली भित्तियाँ फैलती हैं, जिसके कारण छिद्र के पास मोटी भित्ति बाहर की ओर खिंचती है, फलतः रंध्र खुल जाता है। जब इसमें पानी की कमी हो जाती है तो तनाव मुक्त पतली भित्ति पुनः अपनी पुरानी अवस्था में आ जाती है, फलस्वरूप छिद्र बंद हो जाता है ।
प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरता जाता है और शर्करा का स्तर रक्षक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में बढ़ता जाता है। फलस्वरूप परासरण दाब और स्फीति दाब में परिवर्तन हो जाता है । इससे रक्षक कोशिकाओं में एक कसाव आता है जिससे बाहर की भित्ति बाहर की ओर खिंचती है। इससे अंदर की भित्ति भी खिंच जाती है । इस प्रकार स्टोमेटा चौड़ा हो जाता है, अर्थात् खुल जाता है।
अंधकार में शर्करा स्टार्च में बदल जाती है जो अविलेय होती है। रक्षक कोशिकाओं को कोशिका द्रव्य में शर्करा का स्तर गिर जाता है। इससे रक्षक कोशिकाएँ ढीली पड़ जाती हैं। इससे स्टोमेटा बंद हो जाता है।
चित्र : रंध्र का खुलना तथा बंद होना
17. (a) भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है ?
(b) हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?
(c) मानव वृक्क में मूत्र-छनन क्रिया को समझाएँ।
उत्तर⇒ (a) लार भोजन के कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज में बदलता है।
(b) इससे ऑक्सीजन और कार्बन-डाईआक्साइड का परिवहन प्रभावित हो सकता है।
(c) मानव वृक्क की वृक्कनालिकाओं के बोमैन कैप्सल में रक्त की छनन क्रिया होती है। वहाँ से रक्त के उत्सर्जी पदार्थ जल के साथ संग्राहक नलिका से होते हुए मूत्राशय तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार मानव वृक्क में मूत्र-छनन क्रिया संपन्न होती है।
18. प्रकाश-संश्लेषण किसे कहते हैं ? इसका महत्त्व लिखिए।
उत्तर⇒ प्रकाश-संश्लेषण हरे पौधे सूर्य के प्रकाश द्वारा क्लोरोफिल नामक वर्णक की उपस्थिति में CO2और जल के द्वारा कार्बोहाइड्रेट (भोज्य पदार्थ) का निर्माण करते हैं और ऑक्सीजन गैस बाहर निकालते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाशसंश्लेषण कहते हैं।
महत्त्व –
(i) इस प्रक्रिया के द्वारा भोजन का निर्माण होता है जिससे मनुष्य तथा अन्य जीव जंतुओं का पोषण होता है।
(ii) इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन का निर्माण होता है, जो कि जीवन के लिए अत्यावश्यक है। जीव श्वसन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं जिससे भोजन का ऑक्सीकरण होकर शरीर के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है।
(iii) इस क्रिया में CO2 ली जाती है तथा 02 निकाली जाती है जिससे पर्यावरण 02 एवं CO2 की मात्रा संतुलित रही है।
(iv) कार्बन डाइऑक्साइड के नियमन से प्रदूषण दूर होता है।
(v) प्रकाश-संश्लेषण के ही उत्पाद खनिज तेल, पेट्रोलियम, कोयला आदि हैं, जो करोड़ों वर्ष पूर्व पौधों द्वारा संग्रहित किये गये थे ।
19. (i) गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया जाता है ?
(ii) अमीबा में भोजन का अन्तर्गहण और पाचन किस प्रकार होता है?
(iii) हमारे शरीर में मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है ?
उत्तर⇒ (i) मानव फुफ्फुस में अनगिनत कुपिकाएँ होती हैं। यदि इनके सम्मिलित क्षेत्रफल का आकलन करें तो वह लगभग 80 वर्गमीटर के बराबर होगा। अतः इन कृपिकाओं की ही अभिकल्पना है कि हमारे फुफ्फुस का क्षेत्रफल अधिकतम हो जाता है।
(ii) अमीबा कूटपादों के द्वारा भोजन को पकड़ता है और भोजन खाद्यधानी में बंद हो जाता है। खाद्यधानी में कोशिका द्रव्य से पाचक रसों का प्रवेश होता है इस प्रकार खाद्यधानी में उपस्थित भोजन का पाचन होता है। खाद्यधानी भ्रमणशीलहोती हैं। पचे हुए भोजन के अवयव खाद्यधानी कोशिका द्रव्य में मिलते रहते हैं।
चित्र : अमीबा में भोजन का पाचन
(iii) मूत्र बनने की मात्रा का नियमन उत्सर्जी पदार्थों के सान्द्रण, जल की मात्रा, तंत्रिकीय आवेश तथा उत्सर्जी पदार्थों की प्रकृति के द्वारा होता है।
Class 10th Science ( विज्ञान ) Subjective Question 2023
Science Subjective Question | |
S.N | Class 10th Physics (भौतिक) Question 2023 |
1. | प्रकाश के परावर्तन तथा अपवर्तन |
2. | मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार |
3. | विधुत धारा |
4. | विधुत धारा के चुंबकीय प्रभाव |
5. | ऊर्जा के स्रोत |
S.N | Class 10th Chemistry (रसायनशास्त्र) Question 2023 |
1. | रासायनिक अभिक्रियाएं एवं समीकरण |
2. | अम्ल क्षार एवं लवण |
3. | धातु एवं अधातु |
4. | कार्बन और उसके यौगिक |
5. | तत्वों का वर्गीकरण |
S.N | Class 10th Biology (जीव विज्ञान) Question 2023 |
1. | जैव प्रक्रम |
2. | नियंत्रण एवं समन्वय |
3. | जीव जनन कैसे करते हैं |
4. | अनुवांशिकता एवं जैव विकास |
5. | हमारा पर्यावरण |
6. | प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन |