Class 10th Hindi Subjective Question

जित-जित मैं निरखत हूँ Subjective Question Answer 2023 || Class 10th Hindi Jit-Jit mai Nirkhat hun ka Subjective Question Paper Pdf Download 2023

लघु उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुखद समय कब आया ?

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उत्तर ⇒ जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ । घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके । इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्राम से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरहवीं की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराजजी के जीवन में सबसे दु:खद समय आया ।


प्रश्न 2. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज के गुरु उनके बाबूजी थे । वे अच्छे स्वभाव के थे । वे अपने दुःख को व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से बेहद प्रेम था। जब बिरज महाराज साढ़े नौ साल के थे, उसी समय बाबूजी की मृत्यु हो गई । महाराज को तालीम बाबूजी ने ही दिया।


प्रश्न 3. बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी माँ को क्यों मानते थे ? अथवा, बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे ?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्मा को मानते थे। जब वे नाचते थे और अम्मा देखती थी तब वे अम्मा से अपनी कमी या अच्छाई के बारे में पूछा करते थे। उसने बाबूजी से तुलना करके इनमें निखार लाने का काम किया ।

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प्रश्न 4. बिरजू महाराज की कला के बारे में आप क्या जानते हैं ? समझाकर लिखें।

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज नृत्य की कला में माहिर थे । वे नाचने की कला के मर्मज्ञ थे, बचपन से नाचने का अभ्यास करते थे और कला का सम्मान करते थे। इसलिए, उनका नृत्य देशभर में सम्मानित था। वे सिर्फ कमाई के लिए नृत्य नहीं करते थे बल्कि कला-प्रदर्शन उनका सही लक्ष्य था।


प्रश्न 5. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?

उत्तर ⇒ पुराने नर्तक कला प्रदर्शन करते थे। कला प्रदर्शन शौक था। साधन के अभाव में भी उत्साह होता था। कम जगह में गलीचे पर गड्ढा, खाँचा इत्यादि होने के बावजूद बेपरवाह होकर कला प्रदर्शन करते थे। लेकिन आज के कलाकार मंच की छोटी-छोटी गलतियों को ढूँढ़ते हैं। चर्चा का विषय बनाते हैं।


प्रश्न 6. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे ?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी इत्यादि वाद्य यंत्र बजाते थे।


प्रश्न 7. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ में हुआ था। रामपुर में महाराज जी का अत्यधिक समय व्यतीत हुआ था एवं वहाँ विकास का सुअवसर मिला था ।


प्रश्न 8. बिरजू महाराज की अपने शार्गिदों के बारे में क्या राय है ?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज अपने शिष्या रश्मि वाजपेयी को भी अपना शार्गिद बताते हैं। वे उन्हें शाश्वती कहते हैं। इसके साथ ही वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप, दुर्गा इत्यादि को प्रमुख शार्गिद बताए हैं। वे लोग तरक्की कर रहे हैं, प्रगतिशील बने हुए हैं, इसकी भी चर्चा किये हैं।


प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?

उत्तर ⇒ कलकत्ते के एक कांफ्रेंस में महाराजजी नाचे । उस नाच की कलकत्ते की ऑडियन्स ने प्रशंसा की। तमाम अखबारों में छा गये। वहाँ से इनके जीवन में एक मोड़ आया। उस समय से निरंतर आगे बढ़ते गये।


प्रश्न 10. शम्भू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध पर प्रकाश डालिए।

उत्तर ⇒ शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज बचपन में नाचा करते थे। आगे भारतीय कला केन्द्र में उनका सान्निध्य मिला । शम्भू महाराज के साथ सहायक रहकर कला के क्षेत्र में विकास किया। शम्भू महाराज उनके चाचा थे। बचपन से महाराज को उनका मार्गदर्शन मिला।


प्रश्न 11. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला ?

उत्तर ⇒ शम्भू महाराज चाचाजी एवं बाबूजी के साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला।


प्रश्न 12. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके संपर्क में आए ?

उत्तर ⇒ नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज जी दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े और वहाँ कपिलाजी के संपर्क में आए ।


प्रश्न 13. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी ?

उत्तर ⇒ संगीत भारती में प्रारंभ में 250 रु. मिलते थे। उस समय दरियागंज में रहते थे । वहाँ से प्रत्येक दिन पाँच या नौ नंबर का बस पकड़कर संगीत भारती पहुँचते थे । संगीत भारती में इन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था । अंततः दुःखी होकर नौकरी छोड़ दी।


प्रश्न 14. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। उस समय विवाह करना महाराज अपनी गलती मानते हैं। लेकिन बाबूजी की मृत्यु के बाद माँ घबराकर जल्दी में शादी कर दी । शादी को नुकसानदेह मानते हैं। विवाह की वजह से नौकरी करते रहे।


प्रश्न 15. रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?

उत्तर ⇒ रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया क्योंकि महाराज जी छह साल की उम्र में नवाब साहब के यहाँ नाचते थे। अम्मा परेशान थी। बाबूजी नौकरी छूटने के लिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते. थे। नौकरी से जान छूटी इसलिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया गया।


प्रश्न 16. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ । घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके । इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए । उन दो प्रोग्राम से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरहवाँ की गई । ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराजजी के जीवन में दु:खद समय आया ।


दीर्घ उतरिये प्रश्न

प्रश्न 1. “जित-जित मैं निरखत हूँ’ का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒ बिरजू महाराज कथक नृत्य के महान कलाकार हैं। उनका जन्म लखनऊ के जफरीन अस्पताल में 4 फरवरी, 1938 को हुआ। वे घर में आखिरी संतान थे। तीन बहनों के बाद उनका जन्म हुआ था। बिरजू महाराज के पिताजी भी नृत्यकला विशारद थे। वे रामगढ़, पटियाला और रामपुर के राजदरबारों से जुड़े रहे। छह साल की उम्र में ही बिरजू महाराज रामपुर के नवाब साहब के यहाँ जाकर नाचने लगे। बाद में वे दिल्ली में हिंदुस्तानी डान्स म्यूजिक में चले गए और वहाँ दो-तीन साल काम करते रहे। उसके बाद वे अपनी अम्मा के साथ लखनऊ चले गए।
बिरजू महाराज के पिताजी अपने जमाने के प्रसिद्ध नर्तक थे। जहाँ-जहाँ उनका प्रोग्राम होता था, वहाँ-वहाँ वे बिरजू महाराज को अपने साथ ले जाते थे। इस तरह बिरजू महाराज अपने पिताजी के साथ जौनपुर, मैनपुरी, कानपुर, देहरादून, कलकत्ता (कोलकाता), बंबई (मुंबई) आदि स्थलों की बराबर यात्रा किया करते थे। आठ साल की उम्र में ही बिरजू महाराज नृत्यकला में पारंगत हो गए। बिरजू महाराज को नृत्य की शिक्षा उनके पिताजी से ही मिली थी।
बिरजू महाराज जब साढ़े नौ साल के थे तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई। उनके साथ बिरजू महाराज का आखिरी प्रोग्राम मैनपुरी में था। पिताजी की मृत्यु के पश्चात उस छोटी-सी अवस्था में बिरजू महाराज नेपाल चले गए। फिर, वहाँ से मुजफ्फरपुर और बाँसबरेली भी गए। बिरजू महाराज कानपुर में दो-ढाई साल रहे। उन्होंने आर्यनगर में 25-25 रुपए की दो टयूशन की। टयूशन से प्राप्त पैसों से इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। पारिवारिक चिंताओं के कारण वे हाईस्कूल की परीक्षा पास नहीं कर सके।
चौदह साल की उम्र में वे लखनऊ गए। वहाँ उनकी भेंट कपिलाजी से हुई। उनकी कृपा से बिरजू महाराज ‘संगीत-भारती’ से जुड़े। बिरजू महाराज वहाँ चार साल रहे। स्वच्छंदता नहीं होने के कारण बिरजू महाराज ने वहाँ की नौकरी छोड़ दी। लखनऊ आकर वे भारतीय कला केंद्र से संबद्ध हो गए। वहाँ उन्होंने रश्मि नाम की एक लड़की को नृत्यकला में पारंगत किया। इससे प्रभावित होकर दूसरी सयानी लड़कियाँ उनकी ओर आकृष्ट हुईं जिनको उन्होंने मनोयोगपूर्वक नृत्यकला की शिक्षा दी।
कलकत्ते में (कोलकाता में) इनके नृत्य का आयोजन हुआ। वहाँ की दर्शक मंडली ने इनकी खूब प्रशंसा की। उसके बाद उनका प्रोग्राम मुंबई में हुआ और इस तरह वे भारत के विभिन्न प्रसिद्ध महानगरों और नगरों में, नृत्य करने लगे। दिन-प्रतिदिन उनकी ख्याति बढ़ने लगी। इन्होंने उन आयोजनों से अच्छी कमाई की। वे तीन साल तक ‘संगीत भारती’ में रहे। इन्हीं दिनों उन्होंने नृत्य का खूब रियाज किया। इन्होंने उन दिनों विभिन्न वाद्ययंत्रों का भी अच्छा-खासा अभ्यास किया। मध्य यौवन में ही इन्हें काफी प्रसिद्धि मिल गई। उन्होंने 27 साल की उम्र में ही दुनिया भर में अनेक नृत्य किए और खूब नाम और पैसा अर्जित किया । बिरजू महाराज का पहला विदेशी ट्रिप रूस का था।
अठारह साल की उम्र में बिरजू महाराज की शादी हो गई। छोटी उम्र में ही वे परिवार की नानाविध चिंताओं से घिर गए। पर, वे अपनी कला के प्रति निष्ठावान बने रहे। बिरजू महाराज के भीतर यह भावना बराबर बनी रही कि जब शागिर्द को सिखा रहे हैं तब पूर्ण रूप से मेहनत करके सिखाना और अच्छा बना देना है। ऐसा बना देना जैसा कि मैं स्वयं हूँ। बिरजू महाराज के प्रसिद्ध शागिर्दो में कुछ नाम इस प्रकार हैं-शाश्वती, वैरोनिक (विदेशी लड़की), फिलिप मेक्लीन टॉक (विदेशी लडका), तीरथ प्रताप, प्रदीप, दुर्गा आदि। बिरजू महाराज की माँ ही उनकी असली गुरवाइन थीं।

उपलब्धियाँ – पंडित बिरजू महाराज कथक नृत्य के महान कलाकार हैं। कलाप्रेमी जनसाधारण तथा नृत्य रसिकों के बीच कथक और बिरज महाराज एक दूसरे के पर्याय से बन गए हैं। अपनी अथक साधना, एकांत तपस्या, कल्पनाशील सर्जनात्मकता और अटूट लगन के कारण ही बिरजू महाराज को यह सफलता प्राप्त हो सकी है। निश्चय रूप से बिरजू महाराज भारतीय कला के जीवंत प्रमाण हैं। अपने नृत्य आयोजनों से उन्होंने देश-विदेश में अपनी प्रतिभा का लोहा तो मनवाया ही है, साथ ही साथ भारतीय कला एवं संस्कृति की भव्यता की प्रस्तति से उन्होंने सारी दुनिया में भारत का सिर ऊँचा किया है।


सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1. ‘पाँच सौ रुपये देकर मैंने गण्डा बँधवाया’ की व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ शीर्षक से उद्धत है । यह शीर्षक हिन्दी साहित्य की साक्षात्कार विधा है। इस पंक्ति से बिरजू महाराज ने अपने गुरुस्वरूप पिता की कर्तव्यनिष्ठा एवं उदारशीलता का यथार्थ चित्रण किया है।
इस पंक्ति से पता चलता है कि बिरज महाराज के पिता ही उनके गुरु थे । उनके पिता में गुरुत्व की भावना थी। बिरजू महाराज अपने गुरु के प्रति असीम आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए अपने ही शब्दों में कहते हैं कि यह तालीम मुझे बाबूजी से मिली है । गुरु दीक्षा भी उन्होंने ही मुझे दी है । गण्डा भी उन्होंने ही मुझे बाँधा । गण्डा का अभिप्राय यहाँ शिष्य स्वीकार करने की एक लौकिक परंपरा का स्वरूप है । जब बिरजू महाराज के पिता ने उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिये तो बिरजू महाराज ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी कमाई का 500 रुपये उन्हें दिये।


प्रश्न 2. ‘मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना – है, उसको सिखाना है’ की व्याख्या कीजिए।

उत्तर ⇒ प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ से ली गई है। यह शीर्षक हिन्दी साहित्य की साक्षात्कार विधा है। यहाँ स्वयं साक्षात्कार के दरम्यान अपने शिष्य के प्रति निष्ठा, वात्सल्यता एवं निश्छलता की अंतरंग भावना का प्रमाणिकता के आधार पर वर्णन किये हैं।
इस व्याख्यांश में बिरजू महाराज गुरु के रूप में शिष्य के प्रति निश्छलता और वात्सल्यता की भावना का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उनमें किसी प्रकार की स्वार्थपरता एवं व्यावसायिकता नहीं थी। उनकी भावना शिष्य के प्रति सहानुभूतिपूर्ण थी। उनमें इस प्रकार की भावना नहीं थी कि संपूर्ण ज्ञान में से कुछ अपने पास रखें और कुछ शिष्य को दें बल्कि उन्हें लगता था कि जो कुछ मेरे पास है वह केवल मेरे बेटे के लिए नहीं बल्कि सभी शिष्य और शिष्याओं को समान रूप से समर्पित करने के लिए है। मतभेद का लेश मात्र भी भावना उनके हृदय के किसी कोने में उपस्थित नहीं थी।

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